सुदर्शन चक्र भगवान श्री विष्णु का आयुध (शस्त्र) हैं, सुद्रशन चक्र के नाम से इसे सुदर्शन शतक स्तोत्र बोला जाता हैं। इस स्त्रोत्र में कुल १०० श्लोक होते हैं, सभी श्लोक हैं। जो मनुष्य की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करते हैं जैसे की, लक्ष्मी प्राप्ति हेतु प्रयाप्तामुन्नतिम इस मंत्र के द्वारा १०० पाठ होते हैं। विजय प्राप्ति हेतु राजमुकदमा , रोग निवारण हेतु वाणी पौराणिकी, पापकर्म निवारण हेतु डिण्डीरापाण्डुगण्डिररियुवतिमुखैः, सर्वमनोकामना सिद्धि हेतु यस्मिन्विन्यासीभारम इस स्तोत्र की रचना यामुनाचार्य स्वामी ने की थी। यह ग्रन्थ वैष्णव संप्रदाय में विशेष स्थान रखता हैं। यह पाठ मनुष्य जीवन में एक बार अवश्य करना चाहिए।
श्रीकूरनारायण मुनि प्रणीत यह ‘सुदर्शनशतक स्तोत्र’ श्रीवैष्णव सिद्धान्त एवम् वैदिक समाज के लिये एक अनुपम रत्न है। इसकी रचना एक बड़ी विपत्ति के समय श्रीरब्ननाथ भगवान् के परम भक्त एवम् उत्कृष्ट विद्वान् श्रीरत्न क्षेत्र निवासी श्रीकूरनारायण मुनि द्वारा कई शताब्दियों के पूर्व की गई थी।
इसका पाठ एवम् अनुष्ठान अवश्य शीघ्रफलप्रद होता है। पूर्व सें लेकर आज तक भक्त, आराधक, धर्म-अर्थ-काम एवम् मोक्ष की भावनाओं से इसका सफल अनुष्ठान करते चले आ रहे हैं। वस्तुतः श्रींसुदर्शनराज के महत्त्व एवम् विलक्षण चमत्कारों से सारा संस्कृत वाइमय भरा हुआ है। इस विषय में आस्तिकों के लिए इससे अधिक कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के सदृश होगा हां! तो, किसी भी पुराण या स्तोत्र आदि का पाठ अर्थानुसन्धान के बिना किये जाने पर समुचित फलप्रद नहीं होता। अतः अर्थज्ञान अत्यावश्यक वस्तु है। यह सुदर्शनशतक स्तोत्र अति कठिन और भावगम्भीर है-। इसके आराधकों के द्वारा समय-समय पर “इसकी भी एक ऐसी टीका होनी चाहिए; जिससे कि इसका भावार्थ सर्वसाधारण को भी ठीक-ठीक समझ में आ सके” ऐसे शब्द श्रवण में आते हैं | यद्यपि इस पर एक-दो संस्कृत और हिन्दी टीकायें भी लोगों के दृष्टिगोचर हैं, तथापि अभी भी आकारक्षायें अशान्त देखी जाती हैं । अतः इसी दृष्टिकोण को लेकर कि,- स्तोत्र के श्लोकों के भावं संस्कृत न जानने वाले हिन्दी भाषा-भाषी भी समझ कर लाभ ले सकें, इस कारण मूल के साथ-साथ अन्वय सहित हिंन्दी भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है। यद्यपि इसमें सभी शब्दों का पूर्णतः अर्थ लाने का प्रयास तो नहीं किया गया तथापि सभी के भाव प्रायः उचित मात्रा में आ गये हैं । इस लिए प्रेमियों को इससे यदि कुछ भी लाभ हुआ तो मुझे सन्तोष होगा।